सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा शनिवार को राजस्थान हाईकोर्ट की प्लेटिनम जयंती के आयोजन में शामिल हुए। यहां हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के जरिए आयोजित एडीआर में तकनीक और भविष्य के नवाचार और चुनौतियों पर चर्चा की गई।  

सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश प्रशांत कुमार मिश्रा ने कहा कि वर्तमान परिस्थितियों में न्याय व्यवस्था के लिए वैकल्पिक विचार और तकनीकी उपाय अत्यंत आवश्यक हैं। तकनीक के माध्यम से लोगों को भौगोलिक प्रतिबंधों के बिना न्याय मिल रहा है। जिसमें उन्होंने कहा कि आज न्याय व्यवस्था में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंसी (एआई) का उपयोग जरूरी है, लेकिन न्याय केवल ए आई के जरिए प्राप्त नहीं किया जा सकता, क्योंकि कई बार फैसले मस्तिष्क से ही नहीं, दिल से भी किए जाते हैं। 

एआई  मानव मस्तिष्क का स्थान नहीं ले सकती- न्यायाधीश प्रशांत कुमार मिश्रा
उन्होंने कहा कि एआई तकनीक न्याय को प्रदान करने में सहायक हो सकती है, लेकिन यह मानव मस्तिष्क का स्थान नहीं ले सकती। मशीन केवल अपने फाइंडिंग प्रस्तुत कर सकती है, लेकिन हर फाइंडिंग न्याय नहीं होता। उन्होंने उदाहरण के रूप में एक धनवान व्यक्ति द्वारा की गई चोरी और एक गरीब व्यक्ति द्वारा की गई चोरी को एआई केवल एक ही दृष्टिकोण से देखेगी। यदि तकनीक का उचित उपयोग नहीं किया गया तो यह अर्श से फर्श तक भी ला सकती है। दूसरी ओर, इसमें साइबर सुरक्षा और डेटा प्रोटेक्शन के खतरे भी होते हैं, लेकिन अब इ-अनपढ़ नहीं रहा जा सकता। इसके अलावा, वैकल्पिक विचारों के निस्तारण में वकील की भूमिका का इनकार नहीं किया जा सकता।

वहीं, हाईकोर्ट के सीजे एमएम श्रीवास्तव ने कहा कि, वर्तमान में निचली अदालतों में लगभग चार करोड़ मामले और हाईकोर्ट में 65 लाख मामले लंबित हैं। इनको बिना गुणवत्ता कम किए तत्काल निस्तारण करना एक चुनौती है। अब न्यायिक प्रक्रिया में तकनीक का उपयोग करके मामलों का निस्तारण किया जा रहा है, और  ई-कोर्ट इसका उदाहरण है। 

हमने कोविड महामारी के दौरान तकनीक की महत्ता देखी है। ऑनलाइन लोक अदालतों के माध्यम से हमने बड़ी संख्या में मामले निपटाए हैं। वैकल्पिक विचारों के निस्तारण में वकील की भूमिका न्याय प्रणाली में गेम चेंजर की भूमिका निभाएगी। आज प्रदेश में लंबित मामलों में तीन में से एक केस अनादरण के हैं। इन मामलों और एमएसीटी जैसे मामलों को एडीआर के माध्यम से हल किया जा सकता है। हम तकनीक से अधिक सहायता ले सकते हैं, लेकिन साथ ही मानवीय दृष्टिकोण भी बनाए रखना चाहिए।

इस मौके पर जस्टिस पंकज भंडारी ने कहा कि एडीआर मामलों के भार को कम करते हैं, जो न्यायपालिका के भार को बढ़ावा देता है। ऑनलाइन विचारों के निस्तारण से लोगों को कम लागत में न्याय प्राप्त हो रहा है। ई-कोर्ट से भी लोगों को न्याय मिल रहा है। हालांकि, इसमें कुछ क्षेत्रीय असमानता है। इससे जुड़े कुछ कानूनों में संशोधन की जरूरत है। इसके अलावा, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि एआई की मदद तो ली जा सकती है, लेकिन इसके साथ ही मानव मस्तिष्क का उपयोग भी जरूरी है। एआई सेवक हो सकती है, पर मालिक नहीं।

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